Sunday, January 23, 2022

छोटू और गणतंत्र दिवस

गणतंत्र दिवस के आने में केवल दो दिन बचे थे | हमारे पड़ोस में रहने वाला छोटू बाबू ज़रा परेशान दिखाई देता था | झंडा ऊँचा रहे हमारा, विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, उसके होंठ बार बार इसी गीत को दोहरा रहे थे, चेहरे पर कोई भाव नहीं दिखाई देते थे |

मेरे पूछने पर छोटू बाबू ने अपनी व्यथा बतायी | कहा, स्कूल में झंडा फहराया जाएगा तो सभी बच्चो को झंडा लेकर जाना है, सभी छात्रों को सफ़ेद यूनिफार्म में आना है, जो दूध सा सफ़ेद हो और उसकी क्रीज़ न उतरी हो | आगे कहा, आप जानते हैं के उस दिन मिठाई भी बंटेगी और छुट्टी भी जल्दी होगी | हमारी प्रिंसिपल मैडम ने कहा है के सबको अपने अपने गार्डियन के साथ आना है, क्या आप मेरे साथ चलोगे? मैंने भी हामी भर दी मगर फिर भी उसके चेहरे के भाव नहीं बदले | मेरे पूछने पर उसने बताया के उसे गणतंत्र दिवस पर एक भाषण देना है मगर उसके कुछ भी पता नहीं है | मैंने उसे भाषण लिख कर देने का आश्वासन दिया जिससे छोटू की बांछें खिल गयीं |

भाषण का दिन आ गया, सुबह से ही देशभक्ति के गीत अलग अलग जगहों पर बजने शुरू हो गए | सड़कें साफ़ होती रहीं, और लोग अपनी दुकानों के सामने झंडे लगाते गए | मैं वादे के मुताबिक छोटू के साथ उसके स्कूल कि तरफ चल पड़ा | कहीं दूर सारे जहां से अच्छा, हिन्दोस्तांन हमारा बज रहा था | मैं भी वही धुन गुनगुनाता हुआ आगे बढ़ता रहा | हम स्कूल पहुँच गए, और आखिर वो वक़्त आ गया जिसका इंतज़ार छोटू दो दिनों से कर रहा था | स्टेज पर चढ़ कर उसने भाषण देना शुरू किया |

"भारत को आज़ादी मिलने के बाद देश में बड़ी समस्या यह आयी कि देश को चलाया कैसे जाए? देश कि विधि व्यवस्था, शासन, क़ानून व्यवस्था का क्या होगा? इतने बड़े और विविध देश का संचालन कैसे होगा? पूरे देश के लोगो को एक व्यवस्था में कैसे समाहित किया जाएगा? देश के बड़े बुद्धिजीविओं के लिए यह एक बड़ी समस्या थी | 

एक कवि ने कहा है, "प्रीत करे तो ऐसी करें, जैसे लौटा डोर! गर्दन नार फंसाए के, लाए नीर झकोर" इसका अर्थ यह होता है जब तक इंसान के पास सोचने कि शक्ति रहेगी तब तक वह अपने सूझबूझ से हर समस्या का समाधान निकाल ही लेगा। फिर गणमान्य लोगों ने यह निर्णय लिया कि देश को चलाने के लिए एक कानून व्यवस्था बनायी जायेगी जिसका ज़िम्मा बाबा भीमराव अंबेडकर को सौंपा गया । 2 साल 11 महीना 18 दिनों में बाबा ने विद्वानों के साथ मिलकर देश का संविधान तैयार किया ।
26 जनवरी सन 1950 को हमारा देश भारत, गणतंत्र देशों की श्रेणी में आकर खड़ा हुआ था। उद्देश्य एक मात्र था कि हमारा देश कुशल तरीके से चले और सफलता की बुलंदियों पर आसीन रहे।

आज के ही दिन हम लोग झंडा फहरा कर अपने देश भारत को आजादी दिलाने वाले सभी वीर सपूतों को याद करते हैं और उन्हें अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। बस इतना ही कह कर मैं अपनी वाणी को विराम देता हूं। जय हिंद... जय भारत... वंदे मातरम"

मेरे लिखे भाषण को छोटू ने बड़े ही ओजस्वी तरीके से प्रस्तुत किया | स्कूल ग्राउंड तालियों कि गड़गड़ाहट से गूँज उठा | मेरी भी छाती गर्व से फूली जाती थी के मेरे लिखे भाषण को उस बच्चे ने यादगार बना दिया | सारे कार्यक्रम विधिवत पूरे हुए, मेरे हाथ में झंडा पकड़कर छोटू बड़े चाव से लड्डू खा रहा था | अपने हाथ अपनी ही पैंट पे पोछकर छोटू ने मेरे हाथ से झंडा लिया और दुसरे हाथ से मेरी ऊँगली पकड़ ली | हम दोनों घर कि ओर बढ़ रहे थे, मेरे क़दम कुछ धीमे थे, और छोटू हवाओं पर पैर रखता हुआ चल रहा था | 

चलते चलते छोटू अचानक से ठिठका और उसने मुझसे पूछा, भैय्या ये संविधान क्या चीज़ है?
मेरे चेहरे पर एक हलकी मुस्कान तैर गयी, "संविधान एक क़ानून कि किताब होती है, जिसको पढ़कर पढ़े-लिखे लोग देश चलाते हैं "

देश कौन चलाता है? छोटू ने आँखें बड़ी करते हुए पुछा|

"देश में रहने वाले लोग" मैंने कहा |

"मैं भी तो इसी देश में रहता हूँ, मैं तो देश नहीं चलता" उसने मुंह ऐंठकर कहा|

मैं एक पल को थमा, "जैसे तुम अच्छे से पढाई करते हो, सभी का कहना मानते हो, झूट नहीं बोलते, वैसे ही हम सब लोग अपना अपना काम करते हैं और इसी तरह से देश चलता है|"

"पर...मेरे दोस्त तो कहते हैं कि देश मंत्री चलते हैं | क्या वो भी मेरी तरह पढाई करते हैं, क्या वो भी कभी झूट नहीं बोलते?" छोटू कि जिज्ञासा ख़त्म ही नहीं हो रही थी |

"हाँ बेटा वो भी खूब पढ़ाई करते हैं और मंत्री बनते हैं, फिर देश को आगे ले जाने के लिए काम करते हैं" मैंने छोटू से नज़रें चुराते हुए कहा | मुझे इक झूठ का सहारा लेकर उसकी ज्वलंत जिज्ञासा पर पानी डालना पड़ा | छोटू चुप हो गया, शायद उसे उसके जवाब मिल गए थे | मगर चुप तो मैं भी था, पर मेरे मन में न जाने कितने सवाल उत्पन्न होने लगे | छोटू कि चुप्पी में संतोष था, और मेरी चुप्पी में एक फांस थी, जो मुझे अंदर अंदर चुभ रही थी | 

"काश के हमारे देश के नेता भी पढ़े लिखे व नैतिकतावादी होते तो देश कि स्थिति कुछ और ही होते"| यही सोचते हुए हम घर कि ओर बढ़ते रहे | कहीं दूर सारे जहां से अच्छा, हिंदुस्तान हमारा अभी भी बज रहा था |

Wednesday, August 11, 2021

कविता-पदक यूं ही नहीं मिलता

तुम सूंघ रहे हो बस स्वर्ण की महक
फूल सोने का यू हीं खिलता नहीं।
पदक, पदक, पदक यूं ही मिलता नहीं।।

धकेला है वर्षों, तब मिली है जमीन
पहाड़ सफलता का यूं ही हिलता नहीं
पदक, पदक , पदक यूं ही मिलता नहीं।।

सुखाया है खुद को धूप में छांव में
आग, लकड़ियों में यूं ही जलता नहीं
पदक, पदक , पदक यूं ही मिलता नहीं।।

सिया है कई बार फटे हाल ज़िन्दगी
किस्मत का दरार यूं ही सिलता नहीं
पदक, पदक , पदक यूं ही मिलता नहीं।।

गोते कई खाए होंगें, बीच समंदर में
मोती, सिपो से यूं ही निकलता नहीं।
पदक, पदक, पदक, यूं ही मिलता नहीं।।

झेला है कई बारिश और कई ठंड
फल पेड़ो में मीठा यूं ही फलता नहीं
पदक, पदक, पदक, ऐसे ही मिलता नहीं।।

तपता है सालों मेहनत के भट्टी में
लोहा,सांचे में यूं ही ढलता नहीं
पदक, पदक, पदक, यूं ही मिलता नहीं।।

छीलते है घुटने, टूटती है उंगलियां
कोई, एक बार में यूं ही चलता नहीं
पदक, पदक, पदक, यूं ही मिलता नहीं।।

निरंतर प्रयास एवं कठिन परिश्रम
इतिहास पुराना यूं ही बदलता नहीं
पदक, पदक, पदक, यूं ही मिलता नहीं।।
पदक, पदक, पदक, यूं ही मिलता नहीं।।

- विवेक मुखर्जी

Thursday, June 24, 2021

सत्य व्यास के उपन्यास 84, पर आधरित है नई Web Series Grahan

1984, ये भारत के लिए कभी न भूले जाने वाले वक़्त के जैसा है |
 इसी साल स्क्वाड्रन लीडर राकेश शर्मा स्पेस में भेजे गए थे, इसी साल भारतीय आर्मी ने ऑपरेशन मेघदूत को अंजाम दिया, जिससे की भारत को सियाचिन ग्लेशियर पर पूर्णतः कंट्रोल मिला | कुछ अच्छी चीज़ें होने के साथ ही 1984 ने कुछ भयावह घटनाओं को भी महसूस किया | जरनैल सिंह का स्वर्ण मंदिर को किलाबंद करना, ऑपरेशन ब्लू स्टार का होना, भारतीय फ़ौज का स्वर्ण मंदिर में घुसना और अंततः इंदिरा गाँधी की हत्या ; ये सारे ही हादसे पूरे भारतवर्ष के लिए ही बड़े दुखद थे | सुबह के 9:30 बजे इंदिरा गाँधी के दो अंगरक्षकों ने उनपे गोलियां बरसा दीं, मगर उन गोलियों से सिर्फ इंदिरा गाँधी का नहीं, बल्कि पूरे भारत का खून बहा | प्रधानमंत्री की हत्या की खबर जैसे ही जनता तक पहुंची, तब तक नफरत की आंधी एक बड़ा बवंडर बन चुकी थी | लोग ढून्ढ ढून्ढ कर मासूम सिखों की हत्या करते रहे | हर तरफ काल अपनी भुजाएं खोल कर भोले मासूम लोगों को अपनी चपेट में लेता रहा | दिन आग की लपट जैसी भयावह और रातें खून जैसी लाल होती गयीं | 

ठीक यही नरसंहार, हमारे बोकारो की धरती पर भी हुआ | 1984 से पहले बोकारो शहर में सिखों की एक बड़ी आबादी हुआ करती थी, जो कमोबेश व्यापार पर आश्रित थे | दूर दिल्ली में लगी इस आग की ताप ने, बोकारो तक पहुँचते पहुँचते एक नरसंहार की आगजनी को जन्म दे दिया |

इसी शहर के रहने वाले सत्य व्यास ने जो की एक प्रतिष्ठित लेखक हैं, 84 नाम की एक किताब लिखी | वैसे तो मैं हिंदी के नए लेखकों को बहुत कम पढता था, मगर कुछ दोस्तों के बार बार कहने पर मैंने उनकी लिखी "84" ले ली, और सोचा के कभी वक़्त निकाल कर पढ़ लूंगा | काफी महीने ये किताब मेरे बुकशेल्फ की शोभा बढाती रही | एक दिन अचानक जब मैं अपनी शेल्फ में कोई किताब ढून्ढ रहा था तब मेरी नज़र 84 पर पड़ी | सोचा के कुछ पन्ने पलट कर देख लेता हूँ, किसे पता था के वो कुछ पन्ने पलटने का इरादा मुझे रात भर जगा देगा | कहानी शुरू होने के बाद एक मिनट को भी ये ख्याल नहीं आया के इसे अधूरा पढ़ कर रख दूँ, और इसी वजह से जब तक कहानी अपने अंजाम तक नहीं पहुंची मैं इस किताब को रख ही नहीं पाया | जब पूरी किताब पढ़ ली, तब नींद आँखों से ओझल हो चुकी थी और उसकी जगह एक सोच ने ले ली थी | क्या अगर मैं ये किताब न पढता तो मुझे बोकारो के इस रूप के बारे में कभी पता चलता? क्या कभी मैं दंगों से प्रभावित लोगों के मन की बेचैनी समझ पाता? अपनी कहानियों में दंगे बहुतों ने लिखे हैं मगर सत्य व्यास ने दंगों का सौन्दर्यीयकरण नहीं किया बल्कि उसकी कुरूपता को शीशे के सामने खड़ा कर दिया | हर इंसान के अंदर दो व्यक्तित्व रहते हैं और कब कौन सा व्यक्तित्व उस इंसान पर भारी पड़ जाए, ये मैंने 84 पढ़ने के बाद जाना | कहानी जहां एक तरफ दंगों की मार्मिकता को दर्शाती है, वहीँ प्रेम की झलकियां भी दिखाती है | उस समय अगर एक लड़का किसी लड़की के प्रेम में पड़ जाए तो फिर रोमांस किस तरह का होगा ये बड़ा बखूबी लिखा गया है | अरबी साहित्य में प्रेम के 7 पड़ाव के बारे में कहा जाता है; आकर्षण, आसक्ति, प्रेम, विश्वास, उपासना, आवेग और मृत्यु | ये कहानी आपको इसके भी पार ले कर जाती है |

अगर आप किताबें पढ़ने के शौक़ीन हैं और आपने 84 नहीं पढ़ी तो आपसे कुछ छूट रहा है | मेरी मानिये तो आज ही पढ़ लीजिये , और अगर आप किताबें पढ़ने में रूचि नहीं रखते तो इसी कहानी पर आधारित एक वेब-सीरीज जिसका नाम "ग्रहण" है हॉटस्टार पर आने वाली है | हमारे शहर की कहानी है  मतलब ये हमारी कहानी है |

- सैफ इसरार

Friday, March 5, 2021

‘औघड़’ Book Review

 ‘औघड़’ भारतीय ग्रामीण जीवन और परिवेश की जटिलता पर लिखा गया उपन्यास है

जिसमें अपने समय के भारतीय ग्रामीण-कस्बाई समाज और राजनीति की गहरी पड़ताल की गई है। एक युवा लेखक द्वारा इसमें उन पहलुओं पर बहुत बेबाकी से कलम चलाया गया है जिन पर पिछले दशक के लेखन में युवाओं की ओर से कम ही लिखा गया। ‘औघड़’ नई सदी के गाँव को नई पीढ़ी के नजरिये से देखने का गहरा प्रयास है। महानगरों में निवासते हुए ग्रामीण जीवन की ऊपरी सतह को उभारने और भदेस का छौंका मारकर लिखने की चालू शैली से अलग, ‘औघड़’ गाँव पर गाँव में रहकर, गाँव का होकर लिखा गया उपन्यास है। ग्रामीण जीवन की कई परतों की तह उघाड़ता यह उपन्यास पाठकों के समक्ष कई विमर्श भी प्रस्तुत करता है। इस उपन्यास में भारतीय ग्राम्य व्यवस्था के सामाजिक-राजनितिक ढाँचे की विसंगतियों को बेहद ह तरीके से उजागर किया गया है। ‘औघड़’ धार्मिक पाखंड, जात-पात, छुआछूत, महिला की दशा, राजनीति, अपराध और प्रसाशन के त्रियक गठजोड़, सामाजिक व्यवस्था की सड़न, संस्कृति की टूटन, ग्रामीण मध्य वर्ग की चेतना के उलझन इत्यादि विषयों से गुरेज करने के बजाय, इनपर बहुत ठहरकर विचारता और प्रचार करता चलता है। व्यंग्य और गंभीर संवेदना के संतुलन को साधने की अपनी चिर-परिचित शैली में नीलोत्पल मृणाल ने इस उपन्यास को लिखते हुए हिंदी साहित्य की चलती आ रही सामाजिक सरोकार वाली लेखन को थोड़ा और आगे बढ़ाया है।.

Book Address:
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Monday, March 1, 2021

वो लड़ा मगर सिर्फ अपने लिए लड़ा। Book Review Twelfth Fail

ट्वेल्थ फेल | Twelfth Fail | 12th Fail (Hindi)

Writer : Anurag Pathak
Book Price: 196
Pages: 175
publisher: 
Type:  Novel (Hindi)
Ratings : 4.6 Flipkart, 4.5 (Amazon)
Buy: https://amzn.to/2OemaRN

"प्रतिभाएं अकारण आगे नहीं बढ़ती। वे बढ़ती है आपने पुरुषार्थ से, अपने समर्पण से, अपनी मेहनत से, अपने त्याग से, अपनी प्रबल इच्छाशक्ति से।"

आज मैंने दूसरी बार इस किताब को पढ़ा है पहली बार भी जब मैंने पढ़ा था तब भी रोया था और आज भी, शायद मैं खुद को इस उपन्यास में ढुढ पा रहा हूं, या फिर उस पीड़ा को महसूस कर पा रहा हू! लेकिन मैं इसको जितना बार भी पढ़ता हू एक नया ऊर्जा का प्रवाह अपने अंदर महसूस करता हू। मैं सिर्फ इतना ही कह कर अपनी वाणी को समाप्त करूंगा की समस्या बाहर का अंधकार का नहीं है, समस्या तब होती है जब हमरा मन सुविधाओं के लालच में समझौता के अन्धकार में डूब जाता है।
मैं सभी हिन्दी प्रेमियों से कहना चाहता हूं कि सबको ये किताब एक बार जरूर पढ़नी चाहिए!


वर्षों बाद इस डिजिटल दुनिया से इतर कुछ अच्छा पढ़ा
एक प्रतियोगी छात्र किन मनोदशाओं से गुजरता है. कितने मान अपमान सहकर वह निरन्तर अपने लक्ष्य की तरफ उन्मुख रहता है.
जीवन में क्या क्या उसे प्रेरित करता है, कितने कठिन संघर्ष व जुझारू प्रवृत्ति के दम पर अपने लक्ष्य को प्राप्त करता है, इसका सजीव चित्रण है यह कहानी !
प्रतियोगियों के संघर्ष का व रिजल्ट के बाद की दशा जिसमें कुछ चयनित प्रसन्न व बाकी कैसे उदास होते हैं.
इसका मार्मिक वर्णन कहानी के अन्तिम क्षणों में वरुण नाम के चरित्र के अपने दिल्ली के कमरे को छोड़ते हुए दिखाते समय लेखक ने किया है.
मनोज व श्रद्धा का एक दूसरे के प्रति निश्छल स्नेह व लक्ष्य के प्रति एक निष्ठ समर्पण मन रूपी वीणा को अन्दर तक झंकृत कर देता है, को परिष्कृत करता है....
बहुत कुछ प्रेरणादायक है इस उपन्यास में प्रतियोगी छात्रों व सुधी पाठकों के लिए.
ट्वेल्थ फ़ैल खुद से खुद का साक्षात्कार सा प्रतीत होता है! प्रत्येक सामान्य युवा अपने अंदर मनोज को प्रवाहित सा महसूस कर सकता है! ग्रामीण परिवेश के पात्रों का स्थानीय बोली में उदबोधन लेखक को मिट्टी पकड़ पहलवान साबित करता है ! श्रद्धा आज की नारी का प्रतिनिधित्व करती है जो ना केवल बौद्धिक क्षमता से परिपूर्ण है अपितु त्याग और स्नेह की प्रतिमूर्ति है ! पांडे और गुप्ता ने अपने खिलंदड़पान से हम सबको गुदगुदाने का अवसर दिया !
आज के दौर में समसामयिक सात्विक रचना के लिए लेखक अप्रतिम बधाई के पात्र है !!
अगली रचना के इन्तजार मे.
किसी व्यक्ति को अगर वास्तव में संघर्ष की परिभाषा जानना हो तो वो अनुराग पाठक की लिखी हुई यह किताब पढ़े. Priyanshu Vatsaly

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Twelfth Fail - 12th fail by anurag pathak



Thursday, December 24, 2020

आज का ज्ञान

 ये दुनिया सिर्फ अच्छे लोगों के लिए है, यहाँ बुरे लोगों के लिए कोई जगह नहीं है। यहाँ हर आदमी अच्छाई का समुंदर है, अगर तुम अच्छे नहीं हो तो तुम्हें ये दुनियाँ अपने अच्छाई के सागर में डुबो कर मार डालेगी, लिख लेना... 


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Friday, September 18, 2020

लेखक बनते नहीं पैदा होते हैं

लेखक बनते नहीं पैदा होते हैं, जब दिन-दोपहरी, सुबह-शाम, काम-धाम के साथ कोई कोई पढ़ा लिखा युवा भरी जवानी में इश्क़ किताबों से करने लगे और लगातार किताबें पढ़ते पढ़ते दिमाग में बहूत सारे  किताबें  भर जाता है तो एक दिमागी रसायनिक प्रतिकृया के परिणाम स्वरूप एक किताब के छप जाने से  लेखक का जन्म होता है।  

सैफ इसरार नए वाले लेखक हैं, इन्होने बहूत सारी किताबें चाट लेने के बाद किताबों के स्याही से जो नशा चढ़ा तो उसे उतारने के लिए साहब नें किताब लिख डाली। नाम है "It just required one step". इसके साथ अब सैफ इसरार लेखक के नाम से जाने जाते हैं
लेखक होने से पेट नहीं भरता तो रोजी-रोटी के लिए ग्राफिक डिज़ाइनर हैं। साउदी अरब में पिछले तीन-चार सालों से रहते हैं।  उनका लिखा किताब पढने  पर पता चला की जितना उम्दा वो लिखते हैं उससे ज्यादा  ज़िंदादिल आदमी हैं। आदमी कहना गलत होगा जबकि ज़िंदादिल युवा कहना ज्यादा सही है 
सैफ बोकारो इस्पात नगर के रहने वाले हैं। 
मैं सोंचा करता था किसी लेखक से मिलने पर बड़े नजाकत के साथ आदब के साथ मिलना होता है। पर उनसे मिलने पर  मुझे लगा नहीं की उनसे बात करने के लिए किसी अदब जैसे चीजों की जरूरत है। परआप  जैसे है वैसे मिल लीजिये आपको फील नहीं होगा की आप आने वाले समय के बड़े लेखक से मिल रहे हैं। 
वैसे तो मैं किताबों में दिलचस्पी लेने वाला इंसान हूँ पर लंबे समय तक एक किताब पर नजरें जमाये रहना मेरे लिए चुनौतियों भरा काम होता है पर कुछ बार  मिलने से ही साहब किताबे पढ़ने का रोग दे गए साथ में पढ़ने के लिए बहूत सारी किताबें भी। वर्तमान समय में मुझे लगता है किताबों का स्याही चाटने का लत मुझे भी पड़ गया है। सुना है नशा आदमी को बर्बाद कर देता है अब देखते है ये मुझे किताबें पढने का लत कहाँ ले जाकर छोडता है। 
साहब विदेश में रहते है तो मैंने उनसे UAE का नोट मांग लिया ताकि आपको प्रमाण भी दे सकूँ की लेखक विदेश में रहता है :) 

Tuesday, May 19, 2020

और बुरा हूं मैं !

मुझे अब उसके साथ होना चाहिए जब उसे मेरी जरूरत है मैं यह नहीं चाहता कि उसे जरा भी महसूस हो की उसे जब मेरी सख्त जरूरत थी तब मैं उसके साथ नहीं था. मुझे इस बात का डर है के लोगों का कहा वह बात सच ना हो जाए की इंसान को वह व्यक्ति ही मुसीबत में काम नहीं आता जिस पर वो सबसे ज्यादा भरोसा करता है यह बुरे दिन है तो बीत जाएंगे लेकिन एक सफेद और मखमली दामन पर लगा काला बदनुमा धब्बा छोड़ जाएंगे। पूरी उम्र के लिए जिसे देख हर किसी का किसी विश्वासपात्र के ऊपर से विश्वास डगमगाने लगेगा। बहुत बुरा होता है किसी का किसी पर से विश्वास उठ जाना। बुरा होता है बुरे वक्त में हम जितने अच्छा मानते हैं उनका साथ नहीं होना। आज मेरा उसके साथ नहीं होना भरोसे को सही या गलत के तराजू में रखकर तोला जाएगा। जब हर तरफ रिश्ते भरोसा खोते जा रहे हो वहां एक और विश्वास का दम घुट जाना बुरा है। उसने तो कभी नहीं कहा था कि मेरी अच्छाइयों के बदले तुम मुझे मेरे बुरे वक्त के अंधेरे में रोशनी बनकर खड़े रहना। नहीं कहा था उसने जब चारों तरफ अविश्वास का अंधेरा मेरे तरफ बढ़ेगा, उस समय में तुम पर आंख बंद करके भरोसा कर लूंगा और तुम मुझे संभाल लोगे, इस भरोसे का टूट जाना बुरा है और बुरा हूं जो इस बुरे वक्त में बुरा बन बैठा हूं। 


Tuesday, May 5, 2020

बार बार यह दिन आए !!

कभी-कभी इस शहर को दिल खोलकर दुआ देने को जी चाहता है, इस शहर ने इतने नायाब दोस्त लोग जो दिए हैं. जिनसे अगर नहीं मिलते तो जिंदगी अधूरी रह जाती.  दुनियादारी देखकर जब अनुमान लगाता हूं और स्वयं को भाग्यशाली पाता हूं ईश्वर के बनाए इस सृष्टि में कई एक बुराइयां हो सकती है किंतु उन्होंने मेरे साथ न्याय क्या है कुछ अच्छे लोगों को जोड़ कर।
जन्मदिन की ढेर सारी शुभकामनाएं ।
सीतेश आजाद & विवेक सर



Wednesday, April 29, 2020

डुगडुगी बजाकर खेल दिखाया और चला गया, "मदारी" बहुत याद आओगे

इरफान खान के जैसा अगर कोई कलाकार हो सकता था तो वह सिर्फ इरफान खान ही हो सकते थे। मैंने जब भी उनके फिल्में देखें उनको देखकर लगता ही नहीं था कि किसी पटकथा पर अभिनय किया जा रहा है ऐसा लगता था मानो इरफान खान किरदार मे रहकर आपनी कहानी बता रहे हो, बिल्कुल संजीदा एकदम जीवंत...

Tuesday, April 28, 2020

प्रकृति अब प्रतिशोध लेगी।

सारी चालाकी धरी रह जायेगी तुम्हारी, तुम्हारा समझदार होने का गुमान तुम्हारे बर्बादी का कारण बनेगा। अब तुमसे प्रेम करने वाला सँभलने का वक़्त भी देने के मूड में नहीं है.
तुम्हें क्या लगता था कोई तुमसे स्नेह और प्रेम के प्रतिफल तुम्हारी यातनाएं सहकर तुम पर अमृतवर्षा करता रहेगा? अपना सर्वश्व लुटाकर तुम्हारे रास्ते में फूल सजायेगा ? अगर तुम ऐसा सोंचते हो तो तुम गलत सोंचते हो ... बिलकुल गलत !!
अब प्रकृति तुम्हारे जुल्म के बदले शीतलता नहीं क्रोध बरपायेगा गुस्से का ज्वाला इत्ना तेज होगा की तुम कल्पना भी नही कर सकते।

इन्सान अपने दिमाग के प्रयोग से विज्ञान द्वारा कितना भी तरक्की क्यों ना कर ले किन्तु सत्य को झूठला नहीं सकता "पृथ्वी किसी का ऋण नहीं रखती, वह मूल को सूद समेत वापस करती है"
सारी यातनाएं जो पृथ्वी पर बोए गए, अब उसके फसल काटने का समय आ गया है।
जब किसी का अस्तित्व संकट में आ जाए तब उसे अपने रक्षा के लिए रौद्र रूप धारण करना आवश्यक हो जाता है।
तुम्हें ख़याल भी है की तुम अपने चालाक और समझदार होने के मद में उतावले होकर प्राकृतिक की ओर दौड़ पड़े रास्ते में पड़ने वाले पेड़-पौधों जीव जंतुओं नदी नालों को रौंदकर तहस-नहस कर डाला, जिधर तुम्हें हरा भरा जंगल दिखा उधर कुल्हाड़ी लेकर लग गए सीमेंट और कंक्रीट के जंगल उगाने, आकाश नीला था वहाँ तुमने कारखानों का जहर घोल दिया, बड़े-बड़े विराट पर्वतों को भी तोड़कर न जाने कितने सड़कें और ऊंचे मकान बनाया तुमने। तुम्हें खबर भी है कि तुम किधर भी गए सिर्फ प्रकृति का दोहन ही किया।

   लेकिन अब स्थिति बदल चुकी है प्रकृति अब नरमी बरतने के मूड में नहीं है, जिसका अंदाज सिर्फ इस बात से लगाया जा सकता है बेखौफ झुंड के झुंड बेतहाशा भागने वाले चालाक इन्सान घरों में बंद है। देश दुनियाँ में ताला लग चूका है. पहिये का अविष्कार हुआ तब से लेकर आज तक इंसान कभी रुका ही नहीं, मोटर, बस, बुलेट ट्रैन, जेट बनाकर दुनियाँ को मुट्ठी में समेट लेने वाले लोगों की समझ एक वायरस के सामने धरी की धरी रह गई।
                                                                यह प्रकृति का महज एक संकेत नहीं चुनौती है की अगर आने वाले समय में इंसान अपनी आदतों से बाज नहीं आए और प्राकृतिक के कार्यों में हस्तक्षेप किया तो अगले बार स्थिति और भयावह हो सकती है और उसका जिम्मेदार वे स्वयं होंगे।
-कुमार अभय

छोटू और गणतंत्र दिवस

गणतंत्र दिवस के आने में केवल दो दिन बचे थे | हमारे पड़ोस में रहने वाला छोटू बाबू ज़रा परेशान दिखाई देता था | झंडा ऊँचा रहे हमारा, विजयी विश्व ...